सेंटिनल द्वीपवासी कौन हैं?
यह एक नीग्रो वर्ग की जनजाति है जो अंडमान के उत्तरी सेंटिनल द्वीप पर निवास करती है. शारीरिक और भाषागत समानता के आधार पर इन आदिवासियों को जारवा आदिवासियों से जोड़ा जाता है. ऐसा विश्वास है कि इन आदिवासियों की जनसंख्या 150 से कम और सम्भवतः 40 ही है.
इस द्वीप में पाए गये रसोई के अवशिष्टों की कार्बन डेटिंग से भारतीय मानव विज्ञान सर्वेक्षण ने पता लगाया है कि इस द्वीप में 2,000 वर्ष पहले से ही आदिवासी निवास करते रहे हैं. जीनोम अध्ययनों से यह ज्ञात होता है कि अंडमान के कबीले इस क्षेत्र में 30,000 वर्ष पहले से रह रहे होंगे.
सुरक्षित क्षेत्रों की स्थापना क्यों?
1956 में अंडमान निकोबार द्वीप समूह (आदिवासी कबीलों की सुरक्षा) विनियम भारत सरकार द्वारा निर्गत हुआ था जिसमें इस द्वीप समूह के कबीलों के आधिपत्य वाले पारम्परिक क्षेत्रों को सुरक्षित क्षेत्र घोषित किया गया था. इस विनियम के द्वारा इन क्षेत्रों में बिना सरकारी अनुमति के कोई नहीं जा सकता है. यहाँ के आदिवासियों का छायाचित्र खीचना अथवा फिल्म बनाना भी दंडनीय है.
कालान्तर में इन विनियमों में सुधार भी होते रहे हैं जिन सब का उद्देश्य दंड-विधान को और भी कठोर बनाना रहा है. किन्तु हाल में कुछ द्वीपों के लिए प्रतिबंधित क्षेत्र परमिट में ढील दी गई थी. भारत सरकार ने सेंटिनल द्वीप और 28 अन्य द्वीपों को दिसम्बर 21, 2022 तक प्रतिबंधित क्षेत्र परमिट से अलग कर दिया है. इसका अभिप्राय यह हुआ कि विदेशी लोग इस द्वीप में बिना सरकारी अनुमति के जा सकते हैं.
सेंटिनल आदिवासी संकटग्रस्त क्यों माने जाते हैं?
यह कहा जाता है कि ये आदिवासी 60,000 वर्षों से कोई प्रगति नहीं कर सके हैं और मछली तथा नारियल के बल पर अभी भी आदिम जीवन जी रहे हैं.
क्योंकि इनका बाहरी संसार से कोई सम्पर्क नहीं है, इसलिए कीटाणु इन्हें बहुत क्षति पहुँचा सकते हैं. यदि किसी बाहरी यात्री के साथ साधारण फ्लू का वायरस भी इस द्वीप पर पहुँच जाए तो पूरी प्रजाति का नाश हो सकता है.
1960 से इन आदिवासियों तक पहुँचने के छिट-पुट प्रयास हुए हैं परन्तु ये सभी निष्फल रहे हैं, बाहरी व्यक्ति पर ये लोग टूट पड़ते हैं और इस प्रकार जतला देते हैं कि वे अकेले ही रहना चाहते हैं.
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